महाराष्ट्र के संत नरहरि सुनार शिव के ऐसे भक्त थे कि वे कभी दूसरे देवता के दर्शन नही करते थे। एक बार एक सेठ उनकी दूकान पर आया और उसने उन्हें विठोवा देवता के देवालय में चलकर उनके लिए सोने का कमरबंद तैयार करने को कहा। जब नरहरि ने कारण पूछा तो सेठ ने बताया कि उसका कोई पुत्र नही है। उसने मनौती की थी यदि उसे पुत्र हुआ, तो वह विठोवा देवता को सोने का कमरबंद बना देगा। मगर नरहरि ने कहा - वे शिवजी के अलावा किसी अन्य देवालय में प्रवेश नही करते, इसलिए वे किसी दूसरे सुनार के पास जाए।
सेठ ने कहा - 'आपके समान श्रेष्ठ सुनार और कोई नही, इसलिए मैं कमरबंद आपसे ही बनवाऊंगा। मैं देवता का नाप ला देता हूँ। '
नरहरि ने मजबूरी में इसे स्वीकार कर लिया। सेठ नाप लेकर आ गया और नरहरि ने उस नाप की कमरबंद बना दी, मगर पहनाने पर वह बड़ी पड़ी। तब दुबारा नाप लेकर छोटा किया, किंतु इस बार नाप छोटा मालूम पड़ा. कई बार ऐसा हुआ। आख़िर पुजारी व अन्य लोगो ने सलाह दी कि नरहरि अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर वह जाए और स्वयं नाप ले ले।
बड़ी मुश्किल से नरहरि इसके लिए तैयार हुए। जब उन्होंने नाप लेने के लिए मुर्ति को स्पर्श किया, तो वह शिवजी की मालूम पड़ी। नरहरि ने सोचा - कहीं मुझे शिवालय तो नही ले आए। यह सोचकर उन्होंने आँखों की पट्टी खोली, लेकिन वह शिवजी कि मूर्ति नही थी। वे पुन: आँखों पर पट्टी बांधकर नाप लेने लगे। फिर उन्हें लगा कि वह शिव मूर्ति है। फिर पट्टी खोलकर देखा तो वह विठोवाजी की मूर्ति थी।
जब कई बार ऐसा हुआ तब उन्हें अहसास हुआ कि दोनों देवता एक ही है। वे व्यर्थ ही उनमे भेद मानते आ रहे थे। वे प्रसन्नता से चिल्ला उठे - विश्व के जीवनदाता! मैं आपकी शरण में आया हूँ। आपने मेरे मन का अज्ञान और अन्धकार दूर कर दिया। नाम तो अलग-अलग हो सकते है पर इश्वर एक है।
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om sai ram
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