Thursday, October 01, 2009

ॐ साईं राम

साईं राम
सेवा करते समय मनुष्य को अपने बारे में कोई विचार नहीं करना चाहिए। मन में सिर्फ यही विचार होना चाहिए कि कैसे और अच्छी तरह से सेवा करते हुए ईश्वर को अर्पित किया जाये। मनुष्य को कर्म और कर्म योग के मध्य अंतर को समझना होगा। सामान्य क्रिया कलाप या तो स्व हित में किया जाता है या किसी वस्तु विशेष को पाने की लालसा में की जाती है। परन्तु कर्म योग में कार्य लालसा विहीन होता है। सामान्य कर्म का कारण जन्म, मृत्यु तथा पुनर्जन्म हैं परन्तु कर्म योग जन्म के बंधन से मुक्त होने का मार्ग है। आपको सभी सेवा कार्यों को कर्म योग के रूप में लेना चाहिए- बिना किसी नाम के लालच में की गई सेवा यहाँ तक की यह भी नहीं सोचना की कोई किसी की 'सेवा' कर रहा है। किसी के प्रति की गई कोई भी सेवा वास्तव में ईश्वर सेवा है। ~ बाबा

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