Sunday, August 30, 2009

"श्रद्धा सबुरी"

"श्रद्धा सबुरी"

चाहे मानो अल्लहा को,
चाहे कहो शिव-हरी...
फिर भी रखो "श्रद्धा सबुरी".

चाहे कभी दिल माने,
चाहे कभी हो मज़बूरी...
फिर भी रखो "श्रद्धा सबुरी".

चाहे मंजिल के करीब हो,
चाहे बनी हो बहुत दूरी...
फिर भी रखो "श्रद्धा सबुरी".

चाहे प्रार्थना कबूल हो जाए,
चाहे रह जाए अधूरी...
फिर भी रखो "श्रद्धा सबुरी".

चाहे ज़िन्दगी मधुर गीत हो,
चाहे गायब हो उसमे सुर ही...
फिर भी रखो "श्रद्धा सबुरी".

चाहे दिमाग शान्त रहे,
चाहे उस में मच रही हो फ्यूरी...
फिर भी रखो "श्रद्धा सबुरी".

चाहे ज़िन्दगी में हो गई हो पतझड़,
चाहे बसंत के बाद बढ़ रही हो मरक्यूरी...
फिर भी रखो "श्रद्धा सबुरी".

चाहे ज़िन्दगी में कोई अर्चन न हो,
चाहे कदम कदम पर नज़र रखे हो ज्यूरी...
फिर भी रखो "श्रद्धा सबुरी".

चाहे खाने मिले रूखी-सूखी,
चाहे मिले आलू-पूरी...
फिर भी रखो "श्रद्धा सबुरी".

चाहे हो सतयुग, त्रेता यां फिर द्वापर,
चाहे हो कलयुग की २१वी संचुरी...
फिर भी सबसे बड़ा मंत्र - "श्रद्धा सबुरी"



"श्रद्धा की गहराईओं के लिए चाहिए सबुरी,
सबुरी की ऊँचाइयों के लिए चाहिए श्रद्धा ! "

रोहित बहल

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